वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
शिव चालीसा - जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला.
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
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शिव के चरणों में मिलते हैं सारी तीरथ चारो धाम
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
शिव पंचाक्षर स्तोत्र
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
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